By Ritu Singh Last Updated:
करवा चौथ पर सुहागिन महिलाएं उगते हुए चांद को अर्घ्य दे कर अपना व्रत खोलती हैं। ये व्रत पति की लंबी उम्र के लिए रखा जाता है। इस त्योहार की खुशियां और रौनक कई दिनों पहले से घरों में नजर आने लगती हैं। व्रत और पूजा की तैयारी के साथ इस दिन खासतौर से महिलाएं खुद को भी दुल्हन की तरह सजाती हैं। सुहाग,श्रृंगार के सामान और कपड़े आदि की खरीदारी हफ्तों पहले से शुरू हो जाती हैं। इस त्यौहार को मनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी जाती है। इस दिन हाथों में मेहंदी और सुहाग के जोड़े में महिलाएं अपने पति को छलनी से देखकर चांद को अर्घ्य दे कर पति के हाथ से जल पीकर व्रत खोलती हैं। सदियों से चली आ रही ये परंपरा आज भी उसी तरह से निभाई जाती है। भले ही आज ये व्रत और त्योहार ग्लैमराइज हो चुका है, लेकिन इस त्योहार के रीति-रिवाज ट्रेडिशनल तरीके से ही मनाए जाते हैं। तो आइए आज आपको करवा चौथ से जुड़ी हर परंपरा से रूबरू कराएं।
करवा चौथ में सास की तरफ से बहू को मिलने वाला सबसे खास उपहार होता है सरगी। सरगी सास बनाती हैं और उसे बहुएं व्रत के दिन सूर्य निकलने से पहले खाती हैं और उसके बाद व्रत करती हैं। सरगी में मठरी, मेवे, फल, मिठाई आदि चीजें शामिल की जाती हैं। पारंपरिक तौर तरीकों में इस सामान को मिट्टी के बर्तन में रखकर दिया जाता है। (इसे भी पढ़ें: जब करीना कपूर ने कहा कि वो किसी शादीशुदा पुरुष के साथ अफेयर नहीं करेंगी, फिर क्यों की सैफ से शादी)
बाया करवा चौथ पर बहू के मायके से आता है। बाया में सुहाग का सामान होता है जो सास और बेटी दोनों के लिए मायके से दिया जाता है। साथ ही इसमें मिठाइयां, मेवे, कपड़े, बर्तन, चावल आदि शामिल रहते हैं। व्रत के एक दिन पहले यह सामान लड़की के ससुराल पहुंचाया जाता है।
करवा चौथ के व्रत के मौके पर सुहाग और श्रृंगार का सामान बहुएं अपनी सास को देती हैं, उसे पोइया कहा जाता है। इसमें सुहाग का सामान जैसे बिंदी, चूड़ियां, सिंदूर के अलावा मठरी, मिठाइयां, मेवे और सूट या साड़ी शामिल होता है। इस सामान को बहू पूजा के बाद ही सास को देती हैं और सास से आशीर्वाद लेती हैं। (इसे भी पढ़ें: सैफ और करीना की नेट वर्थ जान दातों तले दबा लेंगे उंगली, सिर्फ पटौदी हाउस की कीमत है इतनी)
मेहंदी सौभाग्य की निशानी मानी जाती है। ऐसा माना जाता है कि जिस लड़की के हाथों की मेहंदी ज्यादा गहरी रचती है, उसे अपने पति तथा ससुराल से अधिक प्रेम मिलता है। करवा चौथ पर मेहंदी बहुत खास होती है। इस दिन दुल्हन की तरह सुहागिनें अपने हाथ और पैरों में मेहंदी रचाती हैं।
करवा चौथ की पूजा सभी सुहागिन महिलाएं एक साथ गोलाई में बैठकर करती हैं। सुहागिन महिलाएं अपनी-अपनी सुहाग की थाली को एक-दूसरे को दे कर घुमाती हैं और करवा चौथ के गीत गाती हैं। अंत में सब अपनी सुहाग की थाली हाथ में लेकर व्रत कथा सुनती हैं और सभी बड़ों का आशीर्वाद लेती हैं। जहां पूजा की जाती है वहीं पर देवी पार्वती, शिवजी और गणपति जी की प्रतिमा बनाई जाती है और उनकी पूजा के बाद महिलाएं अपनी पूजा शुरू करती हैं। जब चांद निकलता है तब महिलाएं छलनी पर दीप रख कर पहले चांद को देखती हैं और फिर पति को उसके बाद चंद्रमा को अर्घ्य देती हैं फिर फिर पति के हाथ से जल पीकर अपना व्रत खोलती हैं। (इसे भी पढ़ें: सोने से बनी 75 लाख की साड़ी पहनकर ऐश्वर्या राय ने की थी शादी, जानें क्या थी खासियत)
प्राचीन समय में करवा नाम की एक पतिव्रता स्त्री थी। एक बार उसका पति नदी में स्नान करने गया था। उसी समय एक मगरमच्छ ने उसका पैर पकड़ लिया। इस पर उसने मदद के लिए करवा को पुकारा। तब करवा ने अपनी सतीत्व के प्रताप से मगरमच्छ को कच्चे धागे से बांध दिया और यमराज के पास पहुंची। करवा ने यमराज से पति के प्राण बचाने और मगरमच्छ को मृत्युदंड देने की प्रार्थना की। इस पर यमराज ने कहा कि मगरमच्छ की आयु अभी काफी बची हुई है, समय से पहले उसे मृत्यु नहीं दे सकता। तभी करवा ने यमराज से कहा कि अगर उन्होंने करवा के पति को चिरायु होने का वरदान नहीं दिया तो वह अपने तपोबल से उन्हें नष्ट होने का श्राप दे देगी। इसके बाद करवा के पति को जीवनदान मिला और मगरमच्छ को मृत्युदंड।
एक अन्य कथा के अनुसार शाकप्रस्थपुर वेदधर्मा ब्राह्मण की विवाहिता पुत्री वीरवती ने करवा चौथ का व्रत किया था। नियमानुसार उसे चंद्रोदय के बाद भोजन करना था, लेकिन उससे भूख नहीं सही जा रही थी। उसके भाई उससे अत्यधिक स्नेह करते थे और बहन की यह अधीरता उनसे देखी नहीं जा रही थी। इसके बाद भाइयों ने पीपल की आड़ में आतिशबाजी का सुंदर प्रकाश फैलाकर चंद्रोदय दिखा दिया और वीरवती को भोजन करा दिया। इसके बाद वीरवती का पति तत्काल अदृश्य हो गया। इस पर वीरवती ने 12 महीने तक प्रत्येक चतुर्थी को व्रत रखा और करवा चौथ के दिन इस कठिन तपस्या से वीरवती को पुनः उसका पति प्राप्त हो गया।
तो करवा चौथ का व्रत आज भी पारंपरिक तरीके से ही रखा जाता है। पंजाबी समाज से उठकर अब यह व्रत घर-घर होने लगा है। फिल्मों और टीवी पर इस त्योहार को बहुत ही सुंदर तरीके से दिखाया जाता है और यही कारण है कि इस व्रत को करने का क्रेज लोगों में बढ़ता जा रहा है। तो आपको हमारी ये स्टोरी कैसी लगी? जरूर बताएं और कोई सुझाव हो तो वह भी अवश्य दें।