By Pooja Shripal Last Updated:
भारतीय बिजनेस टाइकून स्वर्गीय धीरूभाई अंबानी के छोटे बेटे अनिल अंबानी (Anil Ambani) दुनिया के सबसे सफल बिजनेसमैन में से एक रहे हैं। 4 जून 1959 को जन्मे अनिल अंबानी की बिजनेस स्किल शानदार थी। अनिल को 'रिलायंस ग्रुप' में उनकी सक्रिय भागीदारी के लिए जाना जाता है। सिर्फ बिजनेस सर्कल में ही नहीं, अनिल अपनी राजनीतिक शक्तियों के लिए भी जाने जाते थे।
अभिनेत्री टीना मुनीम से शादी करने वाले बिजनेस टाइकून का कई मशहूर हस्तियों के साथ करीबी रिश्ता था। अपने तेजतर्रार स्वभाव के लिए मशहूर अनिल को लगभग हर पार्टी में देखा जाता था। एक समय दुनिया के छठे सबसे अमीर व्यक्ति ने खुद को दिवालिया घोषित करके सबको चौंका दिया था, उनके नाम पर करोड़ों का कर्ज बकाया था। आइए नजर डालते हैं अनिल अंबानी के उत्थान से पतन तक की जर्नी पर।
6 जुलाई 2002 को धीरूभाई अंबानी की मृत्यु के बाद अनिल अंबानी और उनके बड़े भाई मुकेश अंबानी ने दो महीने के लिए अपने पिता द्वारा स्थापित समूह 'रिलायंस ग्रुप' का मैनेजमेंट करना शुरू कर दिया। धीरूभाई अंबानी ने अपने बेटों के लिए 25,000 करोड़ का बिजनेस एम्पायर छोड़ा था, लेकिन धीरे-धीरे बिजनेस से जुड़े फैसलों को लेकर अनिल और मुकेश के बीच अनबन होने लगी। उनके झगड़े के तीन मुख्य कारण थे। पहली वजह ये थी कि धीरूभाई अंबानी ने अपनी स्पष्ट वसीयत या उत्तराधिकारी घोषित नहीं किया था, ऐसे में बिजनेस पर किसी का भी स्पष्ट कंट्रोल नहीं था।
झगड़े की दूसरी वजह थी अनिल और मुकेश का बिजनेस के प्रति अलग-अलग नजरिया होना। एक तरफ मुकेश अंबानी टेलीकॉम कारोबार में निवेश करना चाहते थे, तो दूसरी तरफ अनिल बिजली उत्पादन कारोबार को बढ़ाना चाहते थे, लेकिन रिलायंस के पास केवल किसी एक प्रोजेक्ट में निवेश करने के लिए पैसा था और आखिरकार, रिलायंस ने टेलीकॉम बिजनेस में निवेश किया।
विवाद की तीसरी वजह अनिल अंबानी की लग्जरी लाइफस्टाइल थी। वह राजनीति में शामिल हो गए और अनिल 'समाजवादी पार्टी' के जरिए राज्यसभा सांसद बन गए। यह भी बताया गया कि अनिल अंबानी का परिवार अभिनेत्री टीना मुनीम के साथ उनकी शादी के खिलाफ था, क्योंकि वह फैशन और ग्लैमर की दुनिया से आई थीं। हालांकि, अंबानी परिवार को अनिल की पसंद पर सहमत होना पड़ा, क्योंकि उन्होंने घर छोड़ने की धमकी दी थी।
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अनिल और मुकेश के बीच बढ़ते विवाद को देखने के बाद उनकी मां कोकिलाबेन अंबानी ने 'रिलायंस ग्रुप' को दोनों भाइयों के बीच बराबर-बराबर बांट दिया। 18 जून 2005 को उन्होंने आधिकारिक तौर पर विभाजन की घोषणा की। मुकेश को 'रिलायंस इंडस्ट्रीज' और 'आईपीसीएल' मिली, जिसे रिलायंस इंडस्ट्रीज के नाम से जाना जाता है, जिसके अंतर्गत कच्चे तेल का शोधन, पेट्रोकेमिकल उत्पादन और तेल व गैस की रिसर्च आती थी। यह रिलायंस का मुख्य बिजनेस था।
वहीं बंटवारे के बाद अनिल को 'रिलायंस कम्युनिकेशंस', 'रिलायंस कैपिटल' और 'रिलायंस पावर' मिले। इन कंपनियों को एक साथ 'अनिल धीरूभाई अंबानी ग्रुप' (एडीएजी) कहा जाता था। मुकेश को ऐसी कंपनियां मिलीं, जो बड़े पैमाने पर नकदी और मुनाफा कमा रही थीं। हालांकि, अनिल को जो कंपनियां मिलीं, वे तुलनात्मक रूप से कम मुनाफा कमा रही थीं, लेकिन भविष्य के लिए इसमें उच्च संभावनाएं थीं।
बंटवारे के बाद, अनिल को बिना किसी के हस्तक्षेप के अपने बिजनेस के लिए अकेले निर्णय लेने की स्वतंत्रता थी। समझौते के महज दो दिन बाद अनिल ने बड़े-बड़े वादे किए और 'एडीएजी' में हजारों करोड़ रुपए के कई प्रोजेक्ट्स की घोषणा की। उन्होंने 'रिलायंस पावर' के माध्यम से 80,000 करोड़ रुपए की बिजली उत्पादन योजना की घोषणा की। उन्होंने रिटेल कैपिटल में 2000 करोड़ रुपए का निवेश किया।
इन सभी परियोजनाओं को फाइनेंस करने के लिए उन्होंने विभिन्न बैंकों से हजारों करोड़ रुपए का कर्ज लिया और कुछ ही दिनों में उन्होंने 'रिलायंस कम्युनिकेशन' का आईपीओ भी लॉन्च कर दिया। यह अनिल अंबानी की सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक थी। उनके नेतृत्व में 'रिलायंस कम्युनिकेशंस' भारत की सबसे बड़ी दूरसंचार कंपनियों में से एक बन गई। इसने 'सीडीएमए' तकनीक की मदद से भारत में सस्ती मोबाइल सेवाएं भी शुरू कीं।
अनिल ने 'रिलायंस पावर' की स्थापना करके बिजली क्षेत्र में भी प्रवेश किया। उन्होंने 60 सेकंड से भी कम समय में रिलायंस पावर आईपीओ की पूर्ण सदस्यता हासिल करने का इतिहास भी बनाया। यह उस दौरान का सबसे बड़ा आईपीओ था। अनिल की कुल संपत्ति 2007 में 4 लाख करोड़ रुपए हो गई थी।
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समझौते के एक साल के भीतर, अनिल और मुकेश की कुल संपत्ति तेजी से बढ़ी। मुकेश अंबानी की कुल संपत्ति 8.5 बिलियन डॉलर से बढ़कर 20 बिलियन डॉलर हो गई। वहीं, अनिल अंबानी की नेटवर्थ 5.7 अरब डॉलर से बढ़कर 18 अरब डॉलर हो गई। अपने बिजनेस की वृद्धि के साथ, अनिल अंबानी की कुल संपत्ति में 2008 में 18 बिलियन डॉलर से 42 बिलियन डॉलर की तेजी से वृद्धि देखी गई, जिससे वह दुनिया के छठे सबसे अमीर व्यक्ति बन गए थे।
अपने बिजनेस में उन्नति करते हुए अनिल अंबानी ने कभी भी अपने पतन की कल्पना नहीं की थी। उनके डाउनफॉल की कई वजह थीं, जिनमें आक्रामक विस्तार, मोटा कर्जा और प्रतिकूल बाजार कारक शामिल थे। 2008 में अनिल अंबानी के 'ADAG' का मुनाफ़ा लगभग 9,000 करोड़ था, लेकिन 75 प्रतिशत मुनाफ़ा एक कंपनी 'रिलायंस कम्युनिकेशन' से आया। अनिल अंबानी की 'रिलायंस कम्युनिकेशंस' टेलीकॉम सेक्टर में प्रतिस्पर्धा नहीं कर सकी, क्योंकि वह अपने भारी कर्ज के कारण 4जी में अपग्रेड नहीं हो सकी। जहां 'वोडाफोन' और 'एयरटेल' जैसे नेटवर्क 4जी नेटवर्क वाले प्लान लेकर आए, वहीं बेहतर इंटरनेट के लिए लोगों ने 'रिलायंस' से 'वोडाफोन' और 'एयरटेल' की ओर रुख किया।
अनिल अंबानी का अगला पतन रिलायंस पावर के रूप में आया। दादरी और शाहपुर में रिलायंस पावर के दो गैस अग्नि बिजली संयंत्र थे, जो बिजली उत्पादन के लिए प्राकृतिक गैस का उपयोग करते थे, लेकिन अनिल प्राकृतिक गैस पाने के लिए अपने भाई मुकेश अंबानी पर निर्भर थे।
विभाजन के समय यह समझौता हुआ था कि रिलायंस 2.3 डॉलर प्रति यूनिट की दर से रिलायंस पावर को प्राकृतिक गैस उपलब्ध कराएगी। हालांकि, मुकेश ने कीमत दोगुनी कर दी और अनिल ने मुकेश के खिलाफ बॉम्बे हाई कोर्ट में कॉन्ट्रैक्ट के उल्लंघन का मामला दायर किया, लेकिन मुकेश ने फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने मुकेश के पक्ष में फैसला सुनाया। अनिल के पास महंगी गैस खरीदने के अलावा कोई विकल्प नहीं था। बहुप्रतीक्षित दादरी प्रोजेक्ट बंद होने के बाद अनिल टूट गए थे। 2015 तक 'रिलायंस कैपिटल' को छोड़कर उनकी बाकी सभी कंपनियां बंद होने की कगार पर थीं।
2015 तक 'ADAG' पर 1,25,000 करोड़ रुपए का कर्ज हो गया था। इतनी खराब हालत के बावजूद अनिल ने एक नई इंडस्ट्री में कदम रखा और 'Pipavav Defense' को 2000 करोड़ रुपए में खरीद लिया। कंपनी पहले से ही घाटे में थी और उस पर 6,700 करोड़ रुपए का कर्ज था। कंपनी का नाम बाद में बदल दिया गया और इसे 'रिलायंस डिफेंस' कहा गया। चूंकि उन्हें डिफेंस के बारे में कोई जानकारी नहीं थी और कर्ज बहुत अधिक था, अनिल कभी भी समय पर कॉन्ट्रैक्ट पूरा नहीं कर पाए और यह बंद हो गई।
2016 में अनिल अंबानी को सबसे बड़ा झटका मुकेश अंबानी की 'जियो' के आने से लगा। टेलीकॉम सेक्टर में मुकेश अंबानी की एंट्री ने अनिल के लिए सब कुछ बदल दिया। 'जियो' की किस्मत बुलंदियों पर पहुंच गई, जबकि अनिल की 'रिलायंस कम्युनिकेशंस' का बाजार 2 प्रतिशत तक गिर गया।
2019 में सुप्रीम कोर्ट ने अनिल अंबानी को स्वीडिश टेलीकॉम प्रमुख 'एरिक्सन' का कर्ज चुकाने या तीन महीने की जेल की सजा भुगतने के लिए एक महीने का नोटिस दिया था। उसी समय, मुकेश अंबानी ने कदम बढ़ाया और 'रिलायंस कम्युनिकेशंस' पर 'एरिक्सन' का जो 453 करोड़ रुपए का कर्ज था, उसे चुका दिया। इससे अनिल बच गए।
प्रेस को दिए एक बयान में अनिल ने अपने भाई मुकेश को धन्यवाद दिया था और कहा था, “इस कठिन समय में मेरे साथ खड़े रहने और अपना समर्थन देकर हमारे फैमिली वैल्यूज के प्रति सच्चे रहने के महत्व को दिखाने के लिए मेरे आदरणीय बड़े भाई मुकेश और नीता को मेरा हार्दिक धन्यवाद। मैं और मेरा परिवार आभारी हैं कि हम अतीत से आगे बढ़ गए हैं और इस भाव से हम बहुत प्रभावित हुए हैं।"
2020 की शुरुआत में अनिल अंबानी की कंपनी 'रिलायंस कम्युनिकेशंस' ने दिवालियापन के लिए आवेदन किया। उनकी अन्य कंपनियों को भी वित्तीय कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, क्योंकि किसी ने भी उन्हें कर्ज नहीं दिया। उन्होंने स्पष्ट रूप से अदालत में एक अपील दायर की, जिसमें कहा गया कि उनके पास बेचने के लिए सभी संपत्तियां खत्म हो गई हैं।
जहां एक ओर अनिल दिवालिया घोषित हो चुके हैं, वहीं दूसरी ओर उनके बेटे जय अनमोल अंबानी और जय अंशुल अंबानी अपने करियर में बहुत अच्छा कर रहे हैं। जय अनमोल अंबानी 2014 में 'रिलायंस म्यूचुअल फंड' में शामिल हुए और बाद में 'रिलायंस कैपिटल' के कार्यकारी निदेशक और 'रिलायंस निप्पॉन लाइफ एसेट मैनेजमेंट' (RNAM) और 'रिलायंस होम फाइनेंस' (RHF) के बोर्ड सदस्य बने। अनिल अंबानी के छोटे बेटे जय अंशुल अंबानी 'रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर' के साथ मैनेजमेंट में ट्रेनी के रूप में काम करते हैं। उन्होंने रिलायंस म्यूचुअल फंड और रिलायंस कैपिटल में भी एक्सपीरियंस किया है।
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खैर, अनिल अंबानी के बिजनेस फैसले और कड़े आर्थिक माहौल में प्रतिस्पर्धा करने में विफलता उनके पतन का कारण बनी। आप अनिल की अमीरी से लेकर गरीबी तक की यात्रा के बारे में क्या सोचते हैं? हमें कमेंट करके जरूर बताएं।