By Shivakant Shukla Last Updated:
हमने छोटी उम्र से ही अपनी मम्मियों को करवा चौथ का त्योहार मनाते देखा है। यह सबसे चुनौतीपूर्ण उपवासों में से एक है और हम करवा चौथ पर अपनी मां को परेशान करने की हिम्मत भी नहीं करते, क्योंकि वह पानी की एक बूंद पिए बिना ये व्रत रखती हैं। हम सभी को आश्चर्य होता है कि वह इतना कठिन उपवास कैसे पूरा करती हैं, लेकिन वह हमेशा कहती हैं कि यह व्रत उनके लिए एक सौभाग्य है।
करवा चौथ एक ऐसा व्रत है, जिसे पूरे भारत में हिंदू महिलाओं द्वारा बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। यह कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। हालांकि, कई लोग इसे अक्सर 'हरियाली तीज' समझकर भ्रमित होते हैं। बहुत से लोग सोचते हैं कि यह वही व्रत है, जिसे महिलाएं अपने पति के अच्छे स्वास्थ्य और दीर्घायु के लिए रखती हैं, लेकिन वास्तव में इसे अलग-अलग कारणों से मनाया जाता है। आइए आपको बताते हैं कि करवा चौथ, हरियाली तीज से कैसे अलग है?
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भारतवासी सदियों पुराने चले आ रहे रीति-रिवाजों में हमेशा विश्वास करते हैं। हमारी दादी और नानी ने हमें तीज और करवा चौथ की कहानियां भी सुनाई हैं, जो हमारे धर्म में हमारे विश्वास को और बढ़ाती हैं। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, भगवान शिव और देवी पार्वती के मिलन के लिए सावन के महीने में तीज मनाई जाती है। 108 पुनर्जन्मों के बाद पार्वती माता का अंततः पृथ्वी पर भगवान शिव के साथ मिलन हुआ था और उन्होंने (भगवान शिव) इस दिन पार्वती को अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया था।
वहीं, करवा चौथ के पीछे कई कहानियां प्रचलित हैं। हालांकि, करवा चौथ की प्रसिद्ध कहानी रानी वीरवती की है, जो अपने सात भाइयों की इकलौती बहन थीं। करवा चौथ के दिन रानी वीरवती अपने माता-पिता के घर गईं, जहां वह चांद के निकलने का इंतजार कर रही थीं, ताकि वह अपना उपवास तोड़ सकें। हालांकि, उनके भाइयों ने एक मज़ाक करने का फैसला किया और एक पीपल के पेड़ पर दर्पण लगाकर उन्हें बरगलाया, जिसे वीरवती ने चंद्रमा समझकर अपना व्रत खोल दिया।
वीरवती ने जैसे ही खाना खाया, उन्हें तुरंत ही अपने पति के निधन की खबर मिली। वह अपने घर की ओर दौड़ीं और मन ही मन देवी पार्वती से प्रार्थना करती रहीं, जो कुछ देर बाद उनके सामने प्रकट हुईं। माता पार्वती ने रानी वीरवती को उनके भाइयों की चाल के बारे में बताया। वीरवती ने क्षमा मांगी और वादा किया कि वह बिना खाए-पिए उपवास रखेंगी, जिसके बाद देवी पार्वती ने उनके पति को जीवनदान दिया।
करवा चौथ पर एक पत्नी अपने पति की लंबी उम्र के लिए सुबह से लेकर चंद्रमा के उदय होने तक बिना कुछ खाए-पिए निर्जला व्रत रखती है। हालांकि, जब एक महिला तीज का व्रत रखती है, तो वह अगली सुबह तक कुछ नहीं खाती-पीती है। महिला अगले दिन पूजा-पाठ करने के बाद अपना व्रत खोलती है।
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हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार, करवा चौथ का त्योहार कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। वहीं. हरियाली तीज श्रावण मास में मनाई जाती है। ये दोनों त्योहार कितने ही अलग क्यों न हों, लेकिन इन्हें महिलाओं द्वारा अपने परिवार के अच्छे स्वास्थ्य के लिए ही मनाया जाता है। इन व्रतों में वे नए कपड़े पहनती हैं, अपने हाथों को मेहंदी से सजाती हैं और अपने परिवार के सुखी व समृद्ध जीवन के लिए भगवान से प्रार्थना करती हैं।
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तो ये हैं हिंदू धर्म के दो प्रमुख उपवास 'करवा चौथ' और 'हरियाली तीज', जो विवाहित महिलाओं के जीवन के अत्यधिक महत्वपूर्ण त्योहारों में से एक हैं। आपको हमारी यह स्टोरी कैसी लगी? हमें कमेंट कर जरूर बताएं।