हिंदी सिनेमा की दिग्गज दिवंगत अदाकारा सुचित्रा सेन एक बेहद उम्दा अभिनेत्री थीं, जिनसे देव आनंद भी काफी इम्प्रेस थे। एक बार उन्होंने अपनी ऑन-स्क्रीन केमिस्ट्री के बारे में बात भी की थी। आइए बताते हैं।
सुचित्रा सेन (Suchitra Sen) हिंदी सिनेमा की बेहतरीन अदाकाराओं में से एक थीं, जिनकी ऑन-स्क्रीन प्रेजेंस वाकई बेहद शानदार थी। वह सिर्फ एक अभिनेत्री नहीं, बल्कि अपने आप में एक संस्था और कला की उस्ताद थीं, जो किसी भी कैरेक्टर को आसानी से निभा लेती थीं। सुचित्रा की जोड़ी दिग्गज-दिवंगत एक्टर देव आनंद (Dev Anand) के साथ काफी पसंद की जाती थी, जिसके बारे में खुद देव आनंद ने भी बात की थी।
जब बंगाली अभिनेत्री सुचित्रा ने 1960 की फिल्म 'बंबई का बाबू' में दिग्गज अभिनेता देव आनंद के साथ अभिनय किया, तो उन्होंने वह भूमिका निभाई, जिसके लिए फिल्ममेकर्स की पहली पसंद गुजरे जमाने की खूबसूरत अदाकारा मधुबाला थीं। हालांकि, मधुबाला के खराब स्वास्थ्य के कारण निर्देशक राज खोसला ने इस भूमिका के लिए सुचित्रा पर विचार करने के लिए देव आनंद से संपर्क किया और उनका यह फैसला मास्टरस्ट्रोक साबित हुआ।
स्क्रिप्ट के हिसाब से सुचित्रा सेन वह भूमिका निभाने के लिए परफेक्ट थीं। देव आनंद, जो खुद इंडस्ट्री की एक बड़ी हस्ती थे, सुचित्रा के अदायगी के लिए डेडिकेशन से बहुत प्रभावित हुए। हालांकि, सुचित्रा बंगाली एक्ट्रेस थीं और उनके सामने हिंदी भाषा में अपने डायलॉग्स बोलने की चुनौती थी, लेकिन फिर भी उन्होंने शानदार ढंग से अपने किरदार के साथ 100 फीसदी न्याय किया।
उनके प्रोफेशनलिज्म की एक झलक तब मिली थी, जब सिनेमैटोग्राफर जल मिस्त्री ने उनके चेहरे का इंटीमेट क्लोज़-अप लिया, उन्होंने कैमरे के सामने जो एक्सप्रेशंस और मुस्कान बिखेरी, वही पूरे फ्रेम को रोशन करने के लिए काफी थी। कहा जाता है कि फिल्म की शूटिंग के दौरान, देव आनंद को सुचित्रा सेन की एक्सप्रेसिव आंखों से प्यार हो गया था।
उनकी परफॉर्मेंस महज संवादों से परे थी। उनकी बॉडी लैंग्वेज और उनके एक्सप्रेशंस बहुत कुछ कहने के लिए काफी थे। यहां तक कि उन सीन्स में भी, जिनमें मुश्किल डांस या लिप-सिंकिंग की आवश्यकता थी, उन्होंने उसे अपनी भूमिका को अद्भुत सहजता से निभाया था। भांगड़ा नंबर 'देखने में भोला है' में उनका फुटवर्क उनके समर्पण का प्रमाण था, साथ ही गाने के सीक्वेंस 'दीवाना मस्ताना' के दौरान उनकी पिच-परफेक्ट लिप-सिंकिंग भी थी।
सबसे यादगार सीन्स में से एक, जैसा कि देव आनंद ने बताया था, एक मैदान में सेट किया गया एक सीन था, जो सिंपल होने के साथ-साथ इमोशनली काफी मुश्किल था। यहां पहली बार उनका कैरेक्टर अपने प्यार का इजहार करता है। इस सीन में उनके बालों में लगाए गए एक फूल को छोड़कर, किसी भी तरह का फिजिकल कॉन्टैक्ट नहीं था, बावजूद इसके पूरा सीन काफी रोमांटिक और खूबसूरत था।
सुचित्रा के बारे में कहा जाता है कि वह समय की पाबंद, अनुशासित और सेट पर सभी के प्रति अत्यधिक सम्मानजनक थीं। उनका ध्यान केवल अपनी कला पर था, बेकार की बकबक या समय की बर्बादी से बचना उनके नेचर में था। उनकी फिल्मों के कामर्शियल परफॉर्मेंस के बावजूद, देव आनंद ने स्वीकार किया था कि उन्हें एक लोकप्रिय ऑन-स्क्रीन जोड़ी के रूप में माना जाता था और वे उनके साथ मधुर संबंधों को पंसद करते थे। बाद में उन्होंने शंकर मुखर्जी की 'सरहद' में फिर से साथ काम किया था। हालांकि, ये फिल्म इतनी यादगार नहीं थी, लेकिन फिर भी उनकी शानदार केमिस्ट्री का प्रमाण थी, जिसने एक बार फिर दर्शकों का दिल जीत लिया था।
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फिलहाल, सुचित्रा और देव आनंद की केमिस्ट्री के बारे में आपका क्या कहना है? हमें कमेंट करके जरूर बताएं।