हिंदू धर्म में पति की लंबी आयु के लिए कई व्रत होते हैं, लेकिन इनमें करवा चौथ के व्रत का क्रेज सुहागिन महिलाओं में ज्यादा होता है। ये व्रत कैसे शुरू हुआ? आइए आपको इसके बारे में विस्तार से बताते हैं।
करवा चौथ आमतौर पर पंजाबियों का त्योहार माना गया है, लेकिन समय के साथ ये व्रत अब हर घर में मनाया जाने लगा है। पति की लंबी आयु के लिए रखा जाने वाला ये व्रत काफी ग्लैमराइज्ड व्रत हो चुका है। इस व्रत का क्रेज ऐसा हो गया है कि व्रत की तैयारियां बहुत पहले से ही शुरू हो जाती हैं। करवा चौथ पर सुहागिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं और सूर्य उगने के साथ शुरू होने वाला ये व्रत रात को चांद निकलने तक जारी रहता है। चांद को देखने और जल देने के बाद ही इस व्रत को खोला जाता है। ये व्रत आम व्रत से थोड़ा अलग होता है। इस व्रत में भगवान शंकर, गौरी व गणेशजी के साथ चंद्रमा की पूजा का भी विशेष महत्व होता है। इस व्रत में सास के लिए सुहाग की थाली तैयार की जाती है और सास बहू के लिए सरगी बनाती हैं। वहीं कुंवारी लड़कियां भी मनचाहा वर पाने के लिए इस व्रत को रखती हैं। तो आइए जानें कि व्रत की परंपरा कैसे शुरू हुई और इसका क्या महत्व है?
सुहागिन महिलाएं अपने पति की दीर्घायु की कामना के साथ इस व्रत को करती हैं। ऐसी मान्यता है कि जो महिला निर्जला व्रत कर भगवान शिव, मां गौरी और गणपति के साथ चंद्रमा की पूजा करती हैं, उसके पति को लंबी उम्र का आशीर्वाद मिलता है। चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही महिलाएं पति के हाथ से जल ग्रहण कर व्रत खोलती हैं। (इसे भी पढ़ें: जैसी मां वैसी बेटी! अमृता सिंह की कार्बन कॉपी लग रही हैं सारा अली खान, पहचानना हुआ मुश्किल)
इस व्रत में महिलाएं सूर्योदय से पहले उठकर सरगी खाकर अपने व्रत का संकल्प लेती हैं। सरगी की थाली में फल, ड्राई फ्रूट्स, मट्ठी, फैनी, साड़ी और आभूषण होते हैं। ये व्रत में सूर्योदय के साथ व्रत शुरू होता है और चंद्रोदय पर खत्म होता है। व्रत रखने का विशेष महत्व यह होता है कि सुहागिनों के वैवाहिक जीवन में इससे प्रेम का संचार बढ़ता है और पति की लंबी आयु से महिलाओं को सौभाग्यवती होने आशीर्वाद मिलता है। (इसे भी पढ़ें: शलभ दांग पत्नी काम्या पंजाबी के लिए गाते दिखे सलमान खान की फिल्म का ये गाना, वीडियो ने मचाया धमाल)
पौराणिक मान्यता के अनुसार करवाचौथ का व्रत सर्वप्रथम सावित्री ने अपने पति सत्यवान की जान बचाने के लिए किया था। सावित्री ने यमराज से अपने पति को वापस हासिल किया था। इसके बाद इस व्रत को महाभारत काल में द्रौपदी ने भी किया था। कुछ कथाओं में यह भी जिक्र है कि देवी पार्वती ने सर्वप्रथम इस व्रत को किया था।
सबसे पहले तो आप ये जान लें कि करवा एक मिट्टी का बर्तन होता है। काली मिट्टी में शक्कर की चाश्नी मिलाकर तैयार किए गए बर्तन को करवा कहते हैं। करवा में रक्षासूत्र बांधकर, हल्दी और आटे के सम्मिश्रण से एक स्वस्तिक चिह्न बनाते हैं। एक करवे में जल और दूसरे करवे में दूध भरते हैं और इसमें ताम्बे या चांदी का सिक्का डालते हैं। जब बहू व्रत शुरू करती है तो सास उसे करवा देती है, उसी तरह बहू भी सास को करवा देती है। पूजा करते समय और कथा सुनते समय दो करवे रखने होते हैं- एक वो जिससे महिलाएं अर्घ्य देती हैं यानी जिसे उनकी सास ने दिया होता है और दूसरा वो जिसमें पानी भरकर बायना/बाया देते समय अपनी सास को देती हैं। (इसे भी पढ़ें: देबिना बनर्जी को पति गुरमीत चौधरी पर आया बेहद प्यार, शादी की नौवीं सालगिरह पर दिया ये खास गिफ्ट)
करवाचौथ का पौराणिक इतिहास रहा है, लेकिन माना जाता है कि इसकी शुरुआत पहली बार उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में हुई थी। उस समय हिंदुओं का साम्राज्य था और मुगल आक्रमण कर रहे थे। हिंदू मुगल आक्रमणों से हमारे देश की रक्षा करने में लगे थे और ऐसे में उनकी पत्नियां और बच्चे अकेले रह गए थे, क्योंकि पति देश की रक्षा के लिए मुगलों से युद्ध कर रहे थे। तब महिलाओं ने योजना बनाई कि वे अपने पतियों की सुरक्षा और लंबी उम्र के लिए व्रत करेंगी और सोलह श्रृंगार कर एक साथ सभी महिलाएं भगवान की पूजा करेंगी। ताकि सभी महिलाओं के पतियों को संबल और शक्ति मिले।
एक और पौराणिक कथा के अनुसार पहले लड़कियों की शादी छोटी उम्र में ही कर दी जाती थी। शादी के बाद वे दूर-दराज के इलाकों में चली जाती थीं और उनका संपर्क अपने मायके से छूट जाता था। उस समय संचार की कोई व्यवस्था भी नहीं हुआ करती थी, तब कुछ महिलाओं ने यह तय किया कि वे अपने दुख-दर्द को साझा करने के लिए एक महिला मित्र बनाएंगी और उनकी ये दोस्त 'देव-बहन' के रूप में होगी। इस बहन से महिलाएं अपनी सभी समस्याओं को साझा करने लगीं और साथ ही इस विशेष बंधन के लिए करवा चौथ का त्योहार मनाया जाने लगा। इस पर्व के लिए करवा चौथ से एक दिन पहले ये महिलाएं करवा यानी मिट्टी का कलश खरीद कर उसे रंगों से सजाती थीं और सुहाग-श्रृंगार का सामान इसमें रख कर एक-दूसरे को भेंट करके बर्तन खरीदती थीं। यह करवा चौथ एक महिला समारोह की तरह हुआ करता था।
तो इस त्योहार की परंपरा और इतिहास बहुत पुराना है। देवी पार्वती, द्रौपदी, सावित्री ने भी अपने पतिदेव के लिए इन व्रतों को रखा था और यह परंपरा कालांतर से चली आ रही है। इस व्रत को करने से पहले आपको इसके इतिहास के बारे में पता चल गया है। तो हम इस व्रत के लिए सभी सुहागिन महिलाओं को ढेर सारी शुभकामनाएं देते हैं। वैसे, आपको हमारी ये स्टोरी कैसी लगी? हमें जरूर बताएं और यदि कोई सुझाव हो तो वह भी अवश्य दें।