राधा-कृष्ण का प्रेम अजर और अमर है। दोनों के पवित्र प्रेम को 'शाश्वत प्रेम' कहा जाता है। हालांकि, एक-दूसरे से अटूट प्रेम होते हुए भी इनका विवाह नहीं हो पाया। चलिए आपको बताते हैं इसकी वजह।
भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव यानी जन्माष्टमी (Janmashtami 2022) हर वर्ष भाद्रपद महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मनाई जाती है। इस दिन भगवान विष्णु के आठवें अवतार श्री कृष्ण की पूजा-पाठ की जाती है और उनके जन्म के उत्सव को धूमधाम से मनाया जाता है। वैसे तो कृष्णा की कई कथाएं प्रचलित हैं, जिनमें उनकी बाल लीला और रास लीला शामिल हैं, लेकिन इन सबके अलावा राधा रानी से उनकी प्रेम कहानी लोग बड़े प्रेम और सम्मान के साथ याद करते हैं।
भगवान श्री कृष्ण बरसाना की राधा से अटूट और शुद्ध प्रेम करते थे। कहा जाता है कि, वो एक ही शरीर के दो हिस्से थे। हालांकि, कुछ चीजें हैं, जो हमें ये सोचने पर मजबूर करती हैं कि, आखिर क्यों उन्होंने इतने प्रगाढ़ प्रेम के होते हुए भी विवाह नहीं किया? आखिर क्यों उन्होंने राधा से प्रेम होते हुए राजकुमारी रुक्मणी से विवाह कर लिया? तो चलिए आज हम आपको बताने जा रहे हैं राधा-कृष्ण की अजर-अमर प्रेम कथा के बारे में, जो हमें बहुत कुछ सिखाती है।
'इस्कॉन द्वारका' की आधिकारिक वेबसाइट पर मौजूद एक रिपोर्ट के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि, जब भगवान कृष्ण सिर्फ चार साल के थे, तब वे एक दिन अपने पिता नंद के साथ कुछ मवेशियों (गाय) के साथ मैदान में गए थे। मैदान पर कृष्ण ने एक गरज के साथ तूफान खड़ा किया और ऐसा दिखावा किया, जैसे उन्हें इसके बारे में कुछ भी नहीं पता था। कृष्ण के पिता इससे अनजान थे और वह अपने बच्चे व मवेशियों को आंधी से सुरक्षित रखने के लिए घबराने लगे। तभी उनके पिता ने एक महिला को अपनी तरफ आते देखा और तुरंत उस महिला से अपने बेटे की देखभाल करने को कहा।
बिना किसी झिझक के उस महिला ने भगवान कृष्ण के पिता से उनके बच्चे की देखभाल करने का वादा किया। इसके बाद नंद के मवेशियों के साथ चले जाने के बाद, भगवान कृष्ण युवा रूप में प्रकट हुए और महिला से पूछा कि, क्या उन्हें वह समय याद है, जब वे स्वर्ग में रहते थे। महिला ने इस सवाल के जवाब में 'हां' कहा। आपको जानकर हैरानी होगी कि, वह महिला कोई और नहीं, बल्कि राधा थीं। धरती पर अवतार लेने के बाद राधा और कृष्ण की ये पहली मुलाकात थी।
ऐसा माना जाता है कि, भगवान कृष्ण वृंदावन में झील के किनारे बैठकर बांसुरी बजाते थे। वह जैसे ही अपनी मधुर बांसुरी बजाते थे, उनकी प्रेमिका राधा उनसे मिलने दौड़ पड़ती थीं। दोनों के बीच का संबंध शब्दों से परे था और वृंदावन वह जगह थी, जहां वे अक्सर मिलते थे।
भगवान कृष्ण और देवी राधा को हमेशा 'अविभाज्य' कहा जाता है, इसका एक सबसे बड़ा कारण उनका अलौकिक संबंध है। हालांकि, वे एक-दूसरे से अटूट प्रेम करते थे और एक साथ बहुत समय बिताते थे, लेकिन उनका प्रेम सांसारिक बाधाओं से ऊपर था, क्योंकि उनकी आत्माएं एक थीं और गहराई से एक-दूजे के साथ जुड़ी हुई थीं। यही वजह है कि, राधा को कृष्ण का 'शाश्वत प्रेम' कहा जाता था।
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राधा-कृष्ण की प्रेम कहानी के बारे में इस बहुप्रतीक्षित प्रश्न के पीछे कई सिद्धांत और कहानियां हैं कि, महानतम प्रेमियों ने कभी एक-दूसरे से शादी क्यों नहीं की? सबसे आम उत्तरों में से एक यह है कि, राधा और कृष्ण दोनों ने एक-दूसरे से शादी नहीं करने का फैसला किया था, क्योंकि दोनों शादी न करके एक-दूसरे के प्रति अपनी भक्ति दिखाना चाहते थे। कुछ जगह ऐसा विवरण मिलता है कि, राधा खुद को कृष्ण के लिए आदर्श नहीं मानती थीं। वहीं, कुछ जगह ऐसा पढ़ने को मिलता है कि, कृष्ण जी का कहना था कि, राधा उनकी आत्मा का हिस्सा हैं, तो भला वे कैसे अपनी आत्मा से विवाह कर सकते हैं।
इंसानों के रूप में, हम अक्सर उन प्रेम कहानियों को अधूरी कहते हैं, जिनमें दो प्रेम करने वालों का मिलन नहीं होता है। विवाह हमारे लिए एक प्रेम कहानी का लक्ष्य है। हालांकि, भगवान कृष्ण और देवी राधा के मामले में चीजें पूरी तरह से अलग थीं। ये एक ऐसी कहानी है, जो बताती है कि, कैसे कृष्ण के परम भक्तों में से एक, श्रीदामा का श्राप था कि, राधा ने कभी अपने प्रेम कृष्ण से विवाह नहीं किया।
ऐसा माना जाता है कि एक बार, भगवान कृष्ण अपने दोस्तों के साथ खेलने में व्यस्त थे और उन्हें ज्यादा ध्यान नहीं दे रहे थे, तो देवी राधा क्रोधित हो गईं। क्रोधित राधा ने कृष्ण पर अपना क्रोध प्रकट किया था, जबकि कृष्णा से इसे बहुत शांति से संभाला। उनके भक्त श्रीदामा ने राधा के व्यवहार को अपमानजनक पाया। इसलिए, उन्होंने राधा को शाप दिया कि, वह अपने प्रेमी कृष्ण से कभी विवाह नहीं कर पाएंगी।
ऐसा माना जाता है कि, रुक्मिणी देवी लक्ष्मी का अवतार थीं और यह पहले से लिखा हुआ था कि, उनका विवाह कृष्ण से होगा। हालांकि, रुक्मिणी का विवाह कृष्ण से आसान नहीं था, क्योंकि रुक्मिणी के भाई रुक्मी नहीं चाहते थे कि, उनकी बहन का विवाह एक 'छलिया' यानी कृष्ण से हो। हालांकि, कृष्ण ने बलराम और अन्य यादव सैनिकों के साथ रुक्मिणी का अपहरण कर लिया था और दोनों ने मथुरा में विवाह कर लिया था।
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राधा के बिना कृष्ण अधूरे हैं। जब भी कृष्ण का नाम लिया जाता है, तो उनके नाम से पहले राधा का नाम लिया जाता है। राधा-कृष्ण ये भले ही दो अलग-अलग महान विभूतियों के नाम हों, लेकिन ये दोनों नाम एक साथ राधाकृष्ण के रूप में लिए जाते हैं। तो क्या यह उनके 'शाश्वत प्रेम' के बारे में बताने के लिए काफी नहीं है? राधा-कृष्ण के इस अमर प्रेम पर आपकी क्या राय है? हमें कमेंट करके जरूर बताएं, साथ ही हमारे लिए कोई सलाह है, तो अवश्य दें।