जगत सेठ मुगल साम्राज्य के दौरान सबसे अमीर हिंदू व्यापारी थे, जो अंग्रेजों को कर्ज देते थे। आइए आपको उनके और उनके परिवार के बारे में बताते हैं।
अंग्रेजों के भारत आने से पहले देश को सबसे धनी मुल्कों में गिना जाता था और इसे 'सोने की चिड़िया' कहा जाता था। उस दौरान देश में कई अमीर परिवार थे, जिनके पास अपार संपत्ति थी। औपनिवेशिक शासन (Colonial Rule) से पहले भारत संपत्ति का केंद्र था और यहां कई उद्योगपति, बैंकर, मर्चेंट व ट्रेडर्स थे, जिन्होंने भारत की संपत्ति और संस्कृति में महत्वपूर्ण योगदान दिया था।
ब्रिटिश हुकूमत के बावजूद कुछ नाम ऐसे भी थे, जो अपने पैसे के दम पर देश पर राज करते थे और ऐसा ही एक नाम था पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद जिले के जगत सेठ का। सेठ फतेहचंद के नाम से मशहूर जगत सेठ 18वीं सदी में एक व्यापारी और बैंकर थे, जिनकी कुल संपत्ति लगभग 8.3 लाख करोड़ रुपए थी। आइए आपको उनके बारे में विस्तार से बताते हैं।
'जगत सेठ' एक उपाधि थी, जिसका अर्थ है 'दुनिया का बैंकर या व्यापारी'। इसे मुगल सम्राट फर्रुख सियर ने माणिक चंद को प्रदान की थी। परिवार के मुखिया हीरानंद शाह राजस्थान से थे, जो 1652 में पटना आए थे। उस समय पटना व्यापार का केंद्र था। हीरानंद ने अपना नमक का व्यवसाय शुरू किया था और यूरोपीय देश इसके सबसे बड़े खरीदार थे।
व्यवसाय के फलने-फूलने के साथ-साथ हीरानंद शाह ने ब्याज पर पैसा उधार देने का काम भी बढ़ाया और जल्द ही सबसे अमीर साहूकारों में से एक बन गए। हीरानंद के सात बेटे थे और वे सभी अलग-अलग व्यवसायों में लगे हुए थे। उनके एक बेटे माणिक चंद 1700 के दशक में पटना से ढाका आए और राजकुमार फर्रुख सियर को मुगल सम्राट बनने के लिए आर्थिक रूप से मदद की और एक पुरस्कार के रूप में सम्राट ने उन्हें 'जगत सेठ' की उपाधि से सम्मानित किया।
माणिक चंद ने अपनी व्यापारिक रणनीति और राजनीतिक शक्ति के माध्यम से लगभग पचास वर्षों तक वित्तीय बाजार पर शासन किया। जगत सेठ को बंगाल का सबसे बड़ा बैंकर और मनी चेंजर कहा जाता था और उनके पास सिक्के ढालने का एकाधिकार था। जगत सेठ के परिवार के स्वामित्व वाली कंपनी की तुलना 'बैंक ऑफ इंग्लैंड' से की गई थी। जगत सेठ की कंपनी ने उस समय बंगाल सरकार के लिए कई प्रकार के कर्तव्य निभाए थे।
सिक्कों के प्रोडक्शन के अलावा उनकी कंपनी टैक्स कलेक्शन, फाइनेंशियल मैनेजमेंट और फॉरेन करेंसी में भी शामिल थी। कई रिपोर्टों के अनुसार, जगत सेठ के परिवार की संपत्ति ब्रिटिश साम्राज्य से अधिक थी और उनके स्वामित्व वाली संपत्तियों की कीमत 1 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर थी। कुछ रिपोर्टों में यह भी कहा गया है कि 1720 के दशक में ब्रिटिश अर्थव्यवस्था जगत सेठ की संपत्ति से छोटी थी। माणिक चंद और बंगाल के पहले नवाब मुर्शिद कुली खान घनिष्ठ मित्र थे। दोनों ने मिलकर बंगाल की नई राजधानी मुर्शिदाबाद की स्थापना की थी और युद्ध में फ्रांसीसी, ब्रिटिश और पुर्तगाली औपनिवेशिक शक्तियों की सहायता करके बहुत पैसा कमाया। मुर्शिद ने मुगल सम्राटों की सहायता के लिए जगत सेठ के परिवार के क्रेडिट नेटवर्क का इस्तेमाल किया।
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माणिक चंद के बाद सेठ परिवार की सत्ता फतेह चंद के पास आ गई और इस दौरान सेठ परिवार और भी अधिक ऊंचाइयों पर पहुंच गया। सेठों ने अलीवर्दी खान को बंगाल की गद्दी पर लाने के लिए एक सैन्य तख्तापलट की योजना बनाई और उन्हें वित्तपोषित किया। यह कहा गया था कि सेठ इतने शक्तिशाली थे कि वे अपनी राजनीतिक और वित्तीय शक्तियों से शासक सहित बंगाल में किसी को भी बना या बिगाड़ सकते थे।
फतेह चंद का उत्तराधिकारी मेहताब चंद और उनके रिश्तेदार महाराज स्वरूप चंद बने। अलीवर्दी खान के शासनकाल में मेहताब चंद और महाराज स्वरूप चंद के पास जबरदस्त शक्ति थी। सिराज उद-दौला के सत्ता में आने पर जगत सेठ परिवार के लिए सब कुछ बदल गया। बंगाल के नए नवाब सिराज उद-दौला ने जगत सेठ परिवार से 30 मिलियन रुपए की भारी रकम की मांग की, जिसे उन्होंने अस्वीकार कर दिया और परिणामस्वरूप सिराज उद-दौला ने उन्हें मारा भी था।
जगत सेठ के परिवार ने 'ईस्ट इंडिया कंपनी' के रॉबर्ट क्लाइव के साथ साजिश रची और सिराज उद-दौला के साथ लड़ाई की साजिश के लिए अंग्रेजों को धन दिया। प्लासी के युद्ध के बाद सिराज उद-दौला हार गया और मीर कासिम नया नवाब बना।
1763 में मीर कासिम ने जगत सेठ, मेहताब चंद और उनके चचेरे भाई स्वरूप चंद सहित जगत सेठ परिवार के कई सदस्यों की हत्या की योजना बनाई और उनके शवों को मुंगेर किले की प्राचीर से फेंक दिया गया। मेहताब चंद की मृत्यु के बाद उनके बेटे कुशल चंद को 'जगत सेठ' की उपाधि दी गई, जो उस समय केवल 18 वर्ष के थे। कुशल में न केवल अपने पिता की तरह राजनीतिक या व्यावसायिक कौशल का अभाव था, बल्कि वह बेहद खर्चीले भी थे।
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1860 के दशक तक सेठ परिवार की संपत्ति में काफी गिरावट आने लगी। उन्होंने अपनी स्वामित्व वाली भूमि पर नियंत्रण खो दिया और 'ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी' को जो पैसा उन्होंने उधार दिया था वह उन्हें कभी वापस नहीं लौटाया गया। 1900 के दशक तक जगत सेठ का परिवार लोगों की नज़रों से ओझल हो गया। जगत सेठ की फैमिली का वह घर, जहां एक गुप्त भूमिगत सुरंग के माध्यम से अवैध व्यापार की योजनाएं रची जाती थीं, मुर्शिदाबाद में स्थित एक संग्रहालय में बदल दिया गया है।
फिलहाल, मुगल साम्राज्य की तरह ही जगत सेठ परिवार के वंशजों का भी पता नहीं है। खैर, अगर परिवार की विरासत जारी रहती, तो जेफ बेजोस, एलन मस्क, बिल गेट्स, अंबानी और बिड़ला जैसे दुनिया के सबसे अमीर आदमियों में उनका भी नाम होता। तो आपको हमारी ये स्टोरी कैसी लगी? हमें कमेंट करके जरूर बताएं।