17 जनवरी 2022 को कथक नर्तक व शास्त्रीय संगीत के गायक पंडित बिरजू महाराज का निधन हो गया। आइए आपको बताते हैं उनके बारे में कुछ अनसुने तथ्य।
आज यानी 17 जनवरी 2022 को संगीत और नृत्य कला के क्षेत्र के सबसे महान व्यक्ति का निधन हो गया। कथक नर्तक और शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धि हासिल करने वाले पंडित बिरजू महाराज (Pandit Birju Maharaj) ने 83 साल की उम्र में दिल्ली के साकेत हॉस्पिटल में अंतिम सांस ली। इस खबर को सुनने के बाद बिरजू महाराज के चाहने वालों के दिलों में शोक की भावना उमड़ गई। आइए आपको बताते हैं बिरजू महाराज से जुड़े कुछ अनसुने तथ्य।
प्रसिद्ध कथक नर्तक बिरजू महाराज का जन्म 4 फरवरी 1938 को लखनऊ शहर में हुआ था। उनका असली नाम बृजमोहन मिश्रा था, जो लखनऊ के कालका-बिंदादीन घराने से आते थे। उन्होंने अपनी कला से केवल देश ही नहीं बल्कि, विदेशों में भी नाम कमाया है। आज दुनियाभर में 'कथक सम्राट' के नाम से मशहूर बिरजू महाराज को हर कोई जानता है।
बिरजू महाराज के पिता का नाम जगन्नाथ महाराज था, जो लखनऊ घराने से आते थे और वो अचन महाराज के नाम से जाने जाते थे। उनकी मां अम्मा जी महाराज थीं। बिरजू महाराज के पांच बच्चे हैं, जिनमें तीन बेटियां और दो बेटे हैं। उनकी पत्नी का नाम अन्नपूर्णा देवी है।
बिरजू महाराज शुरू से ही बनारस से काफी लगाव रखते थे। इसका कारण था उनका वहां पर ससुराल होना। उन्हें वो शहर खूब भाता था, इसलिए वो काशी आने को बेकरार रहते थे। उनके निधन से संकटमोचन मंदिर का प्रांगण और गंगा महोत्सव का मंच अब सदैव के लिए सूना हो गया।
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बिरजू महाराज ने सात साल की उम्र में अपने पहले गायन की परफॉर्मेंस दी थी। कथक नर्तक के महान महाराज परिवार के वंशज, जिसमें उनके दो चाचा, शंभू महाराज और लच्छू महाराज और उनके पिता और गुरु, अचन महाराज, बिरजू महाराज शामिल हैं। उन्होंने 13 साल की उम्र में संगीत भारती में नृत्य सिखाना शुरू किया था, जिसके बाद उन्होंने नए कथक नृत्य नाटकों को कोरियोग्राफ करके कथक को नई ऊंचाइयों पर पहुंचाया।
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दुनिया भर में व्यापक रूप से भ्रमण करने के बाद, बिरजू महाराज ने हजारों प्रदर्शन दिए हैं और कथक छात्रों के लिए सैकड़ों कार्यशालाएं आयोजित की हैं। बिरजू महाराज साल 1998 में अपनी सेवानिवृत्ति तक, जब उन्होंने अपना स्वयं का नृत्य विद्यालय 'कलाश्रम' दिल्ली में भी खोला, तब तक वो कथक केंद्र, नई दिल्ली के प्रमुख बने रहे थे।
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उन्होंने खुद का संगीत तैयार करके फिल्म 'शतरंज के खिलाड़ी' के लिए गाया था। इसके बाद, साल 2002 में उपन्यास 'देवदास' और 'विश्वरूपम' के फिल्म संस्करण के लिए नृत्य कोरियोग्राफ किया, जिसके लिए उन्होंने 2012 में 'राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार' भी जीता था। उस्ताद द्वारा कोरियोग्राफ किए गए गीतों में से 'ओ काहे छेड़ मोहे', 'ओ उन्नाई कानाधु नान', 'ओ जगवे सारी रैना', 'ओ मोहे रंग दो लाल' जैसे प्रसिद्ध गीत हैं। उन्हें साल 2002 में 'लता मंगेशकर पुरस्कार' से भी सम्मानित किया गया था।
फिलहाल, हम कला के क्षेत्र के सबसे प्रसिद्ध नर्तक व गायक बिरजू महाराज के आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना करते हैं।