आज के इस आर्टिकल में हम आपको बंगाली शादियों के रीति-रिवाज और परंपराओं (Bengali Marriage Rituals And Traditions) के बारे में बताएंगे।
भारत देश धर्मनिरपेक्षता का परिचायक है, जहां सभी धर्मों के लोग एक साथ रहते हैं। यहां अनेक भाषाओं के साथ विभिन्न रीति-रिवाज और परंपाराएं भी हैं। तमिल से लेकर तेलुगू तक, उत्तरांचल से लेकर पश्चिम बंगाल तक हर राज्य में शादियों की एक अलग परंपरा और रीति-रिवाज हैं, जो हमारे देश की खासियत है। अक्सर हमें बॉलीवुड फिल्मों और टीवी शोज में बंगाली शादियों की एक झलक देखने को मिली है, जो काफी इंट्रेस्टिंग लगती है। बंगाली शादियां हमेशा ही एक आकर्षण का केंद्र रही हैं। आज के इस आर्टिकल में हम आपको बंगाली शादियों के रीति-रिवाज और परंपराओं (Bengali Marriage Rituals And Traditions) के बारे में बताएंगे।
लड़का-लड़की जब एक-दूसरे के साथ अपनी पूरी जिंदगी बिताने का फैसला कर लेते हैं, तब उनके परिवारों की पहली मुलाकात कराई जाती है और ये सिर्फ फॉर्मेलिटी नहीं, बल्कि बंगाली शादी की एक परंपरा है। इसे ‘आदान-प्रदान’ (Aadan Pradaan Ritual) कहा जाता है। इस दौरान पंडित दोनों परिवारों के सामने दूल्हा-दुल्हन की कुंडलियां देखते हैं और सब कुछ सही होने के बाद दोनों परिवार एक-दूसरे के साथ गिफ्ट का आदान-प्रदान करते हैं। हालांकि, कुछ मॉडर्न फैमिलीज कुंडली में विश्वास नहीं करती हैं, तो वो इस परंपरा को नहीं निभाते हैं।
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किसी भी कपल के लिए उनकी जिंदगी की नई शुरुआत के लिए उनके माता-पिता का आशीर्वाद जरूरी होता है। बंगाली शादी की रीति-रिवाज और परंपराओं के मुताबिक, जब दूल्हा-दूल्हन के परिवार वाले इस शादी को लेकर कंफर्म हो जाते हैं, तब दुल्हन के परिवारवाले दूल्हे के घर जाते हैं, जहां वे उस पर अपना आशीर्वाद बरसाते हैं। वे होने वाले दूल्हा और दुल्हन पर ट्रेफिल के पत्ते और भूसी वाले चावल छिड़कते हैं और उन्हें सोने के गहने उपहार में देते हैं।
शादी वगैरह तय होने के बाद दूल्हा और दुल्हन के लिए पूजा रखवाई जाती है, जिसे वृद्धी पूजा कहते हैं। इस दौरान दूल्हा और दुल्हन अपने पूर्वजों को याद करते हैं और अपनी जिंदगी की नई शुरुआत के लिए उनका आशीर्वाद लेते हैं।
शादी से एक रात पहले दुल्हन के घर ‘Aai Budo Bhaat’ की रस्म की जाती है। इसमें होने वाली दुल्हन शादी से पहले अपने माता-पिता के घर अपने अंतिम भोजन का आनंद लेती है। दुल्हन का परिवार और करीबी दोस्त इस अवसर पर गाते, नाचते और जश्न मनाते हैं।
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शादी से पहले लड़की के ससुरालवाले पारंपरिक उपहार के रूप में अपना प्यार दुल्हन को भेजते हैं। इस रस्म को ‘Gae Halud Tattva’ कहा जाता है। इसमें दुल्हन को साड़ी, मेकअप उत्पाद, विभिन्न मिठाइयाँ, पान, दही, मछली, भूसी चावल और कई अन्य पारंपरिक रूप से महत्वपूर्ण चीजें मिलती हैं।
दोधी मंगोल (Dodhi Mongol) वह समारोह है, जो शादी के दिन दूल्हा और दुल्हन के घरों में अलग-अलग किया जाता है। विवाहित जोड़े कुछ विवाहित महिलाओं के साथ पास के तालाब में जाते हैं, जहां वे देवी गंगा से आशीर्वाद लेते हैं। फिर दूल्हा और दुल्हन उस तालाब से पानी का एक घड़ा घर लाते हैं।
हल्दी सेरेमनी पूरे सभी राज्यों में समान तौर पर होता है। उत्तर भारत की तरह बंगाली शादियों में हल्दी सेरेमनी को मनाया जाता है। बंगाल में इसे ‘Holud Kota’ और ‘स्नान’ कहा जाता है। इस रस्म में पांच या सात विवाहित महिलाएं अपने-अपने घरों में दूल्हा और दुल्हन दोनों को हल्दी का पेस्ट और तेल लगाती हैं। इसके बाद उन्हें स्नान कर नए कपड़े पहनने चाहिए।
बंगाली दुल्हनों के हाथ में अक्सर आपने सफेद और लाल चूड़ा देखा होगा। ये बंगाली शादियों में एक रस्म होती है, जिसे ‘शंख पोराण’ (Sankha Porana) कहा जाता है। इस रस्म में सात विवाहित महिलाएं दुल्हन को शंख (सफेद चूड़ा) और पाउला (लाल चूड़ा) के रूप में जानी जाने वाली शंख का चूड़ा पहनाती हैं। दुल्हन के दोनों ही हाथों में एक जोड़ा लाल और एक जोड़ा सफेद चूड़ा पहनाया जाता है। इसके बाद दुल्हन शादी के लिए तैयार हो जाती है।
उत्तर भारत की तरह बंगाली शादियों में भी बारात की रस्म होती है, जिसे ‘बोर जात्री’ (Bor Jatri) कहते हैं। इसमें दूल्हा अपने परिवार और दोस्तों के साथ शादी के लिए तैयार होता है और विवाह स्थल की ओर बढ़ता है।
बोरो बोरॉन (Boro Boron) वह रस्म है, जिसमें बरन डाला (baran dala) नामक एक प्लेट को दूल्हे के माथे पर, फिर जमीन पर और फिर से उसके माथे पर छुआ जाता है। इसके बाद दुल्हन की मां आरती करती है और मेहमानों का आयोजन स्थल में स्वागत करती है और मिठाई परोसी जाती है।
बंगाली शादी में दूल्हे को कपड़े दिए जाते हैं, जिसे ‘पोटो बस्त्र’ (Potto Bastra) कहा जाता है। इस दौरान ‘चड़नाटोला’ की एक रस्म होती है, जिसमें दूल्हे को शादी की वेदी पर बैठाया जाता है और फिर ‘पोटो बस्त्र’ के मुताबिक, दूल्हे को उस व्यक्ति के द्वारा नए कपड़े दिए जाते हैं, जो संप्रदान (Sampradaan) करता है। आमतौर पर, यह रस्म दुल्हन के परिवार के बुजुर्ग पुरुष सदस्यों द्वारा या तो दुल्हन के पिता या चाचा द्वारा की जाती है। इस समारोह के बाद दुल्हन मंडप में प्रवेश करती है।
‘सात पाक’ केवल एक बंगाली शादी में देखा जाने वाला एक सुंदर दृश्य है, जहां दुल्हन लकड़ी के स्टूल पर बैठती है, जिसे ‘पिडी’ (Pidi) या ‘पीरी’ (Piri) कहा जाता है और उसके भाइयों या चाचाओं द्वारा मंडप में ले जाया जाता है। मंडप में प्रवेश करने पर दुल्हन को अपने दूल्हे को नहीं देखना चाहिए, इसलिए उसे अपने चेहरे को पवित्र पान के पत्तों से ढक कर रखना पड़ता है। उसे स्टूल पर उठाकर उसके भाई दूल्हे के चारों ओर सात चक्कर लगाते हैं।
सात फेरे लेने के बाद दुल्हन अपने चेहरे के सामने से भृंग के पत्तों को हटाती है और अंत में अपने दूल्हे की ओर देखती है। सभी मेहमानों की उपस्थिति में दूल्हा और दुल्हन के बीच प्यार से भरी पहली नज़र का आदान-प्रदान ‘शुभो दृष्टि’ (Subho Dristi) कहलाता है।
शुभो दृष्टि के बाद, दूल्हा और दुल्हन फूलों की माला एक-दूसरे को पहनाते हैं। इस दौरान दुल्हन पिडी पर बैठी हुई रहती है। वे तीन बार माला का आदान-प्रदान करते हैं और एक-दूसरे को पति-पत्नी के रूप में स्वीकार करने के पहले कदम की ओर आगे बढ़ते हैं। ये रस्म बंगाली शादियों में ‘माला बादल’ कहलाती है।
जय माला के बाद दूल्हा-दुल्हन वेदी पर बैठते हैं। इसके बाद जो आदमी दूल्हे को ‘पोटो बस्त्र’ देता है, वही दुल्हन का हाथ दूल्हे के हाथ में देता है। फिर उनके हाथों को एक पवित्र धागे से बांध दिया जाता है और पुजारी वैदिक मंत्रों का पाठ करते हैं। हिंदू शादियों में जहां इसे कन्यादान कहा जाता है, बंगाली शादियों में इस रस्म को ‘संप्रदान’ (Sampardaan) कहा जाता है।
‘यज्ञ’ (Yagna) वो जगह है, जहां पंडित मंत्रों का पाठ करते हैं और दूल्हा-दुल्हन पवित्र अग्नि के सामने बैठते हैं। इसके बाद दूल्हा-दुल्हन पवित्र अग्नि के सात फेरे लेते हैं। इस रस्म को ‘सप्तपदी’ (Saptapadi) या ‘सात पाक’ (Saat Paak) कहा जाता है। दूल्हा-दुल्हन को अपने पैर की उंगलियों से सात पान के पत्तों पर रखी सात सुपरियों को छूना होता है।
इस अनुष्ठान में, दूल्हा और दुल्हन पवित्र अग्नि को मुरमुरे का भोग लगाते हैं। दुल्हन का भाई उसके हाथों में फूला हुआ चावल देता है, जबकि दूल्हा पवित्र अग्नि में प्रसाद डालने के लिए उसके पीछे खड़े होकर हाथ पकड़ता है। इस अनुष्ठान को ‘अंजलि’ (Anjali) कहा जाता है।
सभी रस्में पूरी होने के बाद दूल्हा, दुल्हन के बालों की बिदाई पर सिंदूर लगाता है। यह उनकी शादी की रस्मों के पूरा होने का प्रतीक है। इसके बाद, दुल्हन अपने ससुराल वालों द्वारा उपहार में दी गई एक नई साड़ी, एक घोमता (Ghomta) से अपना सिर ढक लेती है। इस अनुष्ठान को ‘सिंदूर दान’ (Sindoor Daan) कहा जाता है।
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शादी की सभी रस्में पूरी होने के बाद दुल्हन की विदाई का वक्त आता है। वो अपने माता-पिता व अन्य सदस्यों को विदाई देती है और पति व ससुरालवालों के साथ अपने नए घर के लिए निकल जाती है। इसे ‘बिदा’ (Bidaay) कहा जाता है।
इस रस्म में न्यूली मैरिड कपल का दूल्हे के घर में स्वागत किया जाता है। कपल जिस गाड़ी में आते हैं, उसके नीचे महिलाएं पवित्र जल डालते हैं। फिर दरवाजे पर दुल्हन Lac Dye (लाल रंग में) और दूध युक्त एक बड़ी प्लेट में कदम रखती है और फर्श पर रंगीन पैरों के निशान छोड़कर नए घर में प्रवेश करती है। इस अनुष्ठान को ‘बौ बरन’ (Bou Baran) कहा जाता है।
दूल्हे के घर में पहली रात दूल्हे और दुल्हन को अलग-अलग कमरों में सोना पड़ता है और इसे ‘काल रात्रि’ (Kaal Ratri) कहा जाता है।
जब इस रस्म में नई दुल्हन को अपने नए परिवार के लिए पकवान बनाना होता है, तो उसे ‘बौ भात’ (Bou Bhaat) कहते हैं। दूल्हे के रिश्तेदारों और दोस्तों के लिए लंच या डिनर पार्टी भी आयोजित की जाती है।
बंगाली शादी की सभी रस्मों के बाद ‘फूल शोज्जा’ (Phool Shojja) की रस्म आती है। ये पति-पत्नी की साथ में पहली रात होती है। इस दौरान उनके कमरे और पलंग को फूलों से सजाया जाता है। दुल्हन भी नई साड़ी में तैयार हो जाती है और फूलों के गहने पहनती है।
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तो इस तरह बंगाली शादियों की सुंदर समाप्ति होती है। तो आपको बंगाली शादियों की रस्में और परंपराएं कैसी लगीं? हमें कमेंट करके जरूर बताएं, साथ ही कोई सुझाव हो तो अवश्य दें।